Diwali Special: हरिवंश राय बच्चन की खूबसूरत कविता- यह दीपक है, यह परवाना!
डिजिटल डेस्क। दिवाली के खास मौके पर अगर आपके घर में गेट-टुगेदर होने वाला है और आप कविताओं, शेर-शायरी का शोक रखते हैं तो आपको हरिवंश राय बच्चन जी की यह कविता जरुर पढ़नी चाहिए। साथ ही अपने आस-पास के लोगों को भी सुनानी चाहिए। यह कविता इस खास मौके को और भी खास बना देगी। आइए पढ़ते हैं उनकी कविता यह दीपक है, यह परवाना…
यह दीपक है, यह परवाना।
ज्वाल जगी है, उसके आगे
जलनेवालों का जमघट है,
भूल करे मत कोई कहकर,
यह परवानों का मरघट है;
एक नहीं है दोनों मरकर जलना औ’ जलकर मर जाना।
यह दीपक है, यह परवाना।
इनकी तुलना करने को कुछ
देख न, हे मन, अपने अंदर,
वहाँ चिता चिंता की जलती,
जलता है तू शव-सा बनकर;
यहाँ प्रणय की होली में है खेल जलाना या जल जाना।
यह दीपक है, यह परवाना।
लेनी पड़े अगर ज्वाला ही
तुझको जीवन में, मेरे मन,
तो न मृतक ज्वाला में जल तू
कर सजीव में प्राण समर्पण;
चिता-दग्ध होने से बेहतर है होली में प्राण गँवाना।
यह दीपक है, यह परवाना।