Poem: सुमित्रानंदन पंत की कविता- चींटी को देखा?
डिजिटल डेस्क। सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। उनके काव्य में झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक वबिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था।
उनकी कविता शैली की खास बात ये थी कि वे बहुत ही आसान विषयों पर इतना खूबसूरत तरीके से लिखते कि हर कोई उनका मुरीद हो जाता था। जैसे उनकी लिखी एक कविता ‘चींटी को देखा?’ पढ़िए कैसे उन्होंने यहां चींटी का खूबसूरत वर्णन किया है।
चींटी को देखा?
चींटी को देखा?
वह सरल, विरल, काली रेखा
तम के तागे सी जो हिल-डुल,
चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल,
यह है पिपीलिका पाँति! देखो ना, किस भाँति
काम करती वह सतत, कन-कन कनके चुनती अविरत।
गाय चराती, धूप खिलाती,
बच्चों की निगरानी करती
लड़ती, अरि से तनिक न डरती,
दल के दल सेना संवारती,
घर-आँगन, जनपथ बुहारती।
चींटी है प्राणी सामाजिक,
वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक।
देखा चींटी को?
उसके जी को?
भूरे बालों की सी कतरन,
छुपा नहीं उसका छोटापन,
वह समस्त पृथ्वी पर निर्भर
विचरण करती, श्रम में तन्मय
वह जीवन की तिनगी अक्षय।
वह भी क्या देही है, तिल-सी?
प्राणों की रिलमिल झिलमिल-सी।
दिनभर में वह मीलों चलती,
अथक कार्य से कभी न टलती।