कबीर जयंती: धर्म, अध्यात्म, भक्ति, वैराग्य पर आधारित हैं कबीर के दोहे, मिलता है जीवन दर्शन का सिद्धांत
संत कबीर के दोहे में मार्गदर्शन देखने को मिलता है
डिजिटल डेस्क। भारतीय संत परंपरा में संत कबीर का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। संत कबीर ने सामाजिक कुरीतियों तथा जाति भेद, कट्टरपंथ, धर्मांधता, धर्म अंधविश्वास आदि पर निर्भीकतापूर्वक प्रहार किया है। कबीर साहब की भाषा-शैली लोक प्रचलित, सरल रोचक व सामान्य है। कहीं उनके दोहों में कोमलता है तो कहीं फटकार के साथ-साथ उनके दोहों में गूढ़ता भी है तो कहीं जीवन-दर्शन के विशेष सिद्धांत भी हैं। सतगुरु कबीर के दोहों व साखियों मानव जाति के लिए मार्गदर्शन देखने को मिलता है। धर्म, अध्यात्म, भक्ति, वैराग्य पर आधारित उनके दोहे प्रेरणा-स्रोत हैं। आज संत कबीर की जयंती पर पढ़िए उनके लिखे कुछ खास दोहे।
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥
दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥
कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर॥